कल देव शिल्पी विश्वकर्मा का जन्मदिन था। इनके जन्मदिन को देश भर में विश्वकर्मा जयंती अथवा विश्वकर्मा पूजा के नाम से मनाया जाता है। देवशिल्पी विश्वकर्मा ही देवताओं के लिए महल, अस्त्र-शस्त्र, आभूषण आदि बनाने का काम करते हैं। इसलिए यह देवताओं के भी आदरणीय हैं।
इन्द्र के सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया है। शास्त्रों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि की रचना में ब्रह्मा की सहायता की और संसार की रूप रेखा का नक्शा तैयार किया। मान्यता है कि विश्वकर्मा ने उड़ीसा में स्थित भगवान जगन्नाथ सहित, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण भी विश्वकर्मा के हाथों ही हुआ माना जाता था।
विश्वकर्मा ने किया लंका का निर्माण :
रामायण में वर्णन मिलता है कि रावण की लंका सोने की बनी थी। ऐसी कथा है कि भगवान शिव ने पार्वती से विवाह के बाद विश्वकर्मा से सोने की लंका का निर्माण करवाया था। शिव जी ने रावण को पंडित के तौर पर गृह पूजन के लिए बुलवाया।
पूजा के पश्चात रावण ने भगवान शिव से दक्षिणा में सोने की लंका ही मांग ली। सोने की लंका को जब हनुमान जी ने सीता की खोज के दौरान जला दिया तब रावण ने पुनः विश्वकर्मा को बुलवाकर उनसे सोने की लंका का पुनर्निमाण करवाया।
रामसेतु का निर्माण :
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम के आदेश पर समुद्र पर पत्थरों से पुल का निर्माण किया गया था। रामसेतु का निर्माण मूल रूप से नल नाम के वानर ने किया था। नल शिल्पकला (इंजीनियरिंग) जानता था क्योंकि वह देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा का पुत्र था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।
भगवान महादेव के रथ का निर्माण :
महाभारत के अनुसार तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के नगरों का विध्वंस करने के लिए भगवान महादेव जिस रथ पर सवार हुए थे, उस रथ का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। वह रथ सोने का था। उसके दाहिने चक्र में सूर्य और बाएं चक्र में चंद्रमा विराजमान थे। दाहिने चक्र में बारह आरे तथा बाएं चक्र में 16 आरे लगे थे।
श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी का निर्माण :
श्रीमद्भागवत के अनुसार द्वारिका नगरी का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। उस नगरी में विश्वकर्मा का विज्ञान (वास्तु शास्त्र व शिल्पकला) की निपुणता प्रकट होती थी। द्वारिका नगरी की लंबाई-चौड़ाई 48 कोस थी। उसमें वास्तु शास्त्र के अनुसार बड़ी-बड़ी सड़कों, चौराहों और गलियों का निर्माण किया गया था।
पुष्पक विमान का निर्माण :
इसके अलावा कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।
आज के युग में विश्वकर्मा पूजा :
देव शिल्पी होने के कारण भगवान विश्वकर्मा मशीनरी एवं शिल्प उद्योग से जुड़े लोगों के लिए प्रमुख देवता हैं। वर्तमान में हर व्यक्ति सुबह से शाम तक किसी न किसी मशीनरी का इस्तेमाल जरूर करता है जैसे कंप्यूटर, मोटर साईकल, कार, पानी का मोटर, बिजली के उपकरण आदि। भगवान विश्वकर्मा इन सभी के देवता माने जाते हैं।
इसलिए वर्तमान युग में विश्वकर्मा का महत्व दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि पहले सिर्फ शिल्पकार ही इनकी पूजा किया करते थे लेकिन अब घर-घर में इनकी पूजा होने लगी है।
ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा की पूजा करने से मशनरी लंबे समय तक साथ निभाती हैं एवं जरूरत के समय धोखा नहीं देती है। विश्वकर्मा की पूजा का एक अच्छा तरीका यह है कि आप जिन मशीनरी का उपयोग करते हैं उनकी आज साफ-सफाई करें।
उनकी देखरेख में जो भी कमी है उसे जांच करके उसे दुरूस्त कराएं और खुद से वादा करें कि आप अपनी मशीनरी का पूरा ध्यान रखेंगे। विश्वकर्मा की पूजा का यह मतलब नहीं है कि आप उनकी तस्वीर पर फूल और माला लटकाकर निश्चिंत हो जाएं।
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