ग्रह और राशियों के प्रतिकूल प्रभाव होते है शांत
वैदिक ज्योतिष की गणना के अनुसार प्रतिवर्ष चार नवरात्र होते
हैं। इनमें चैत्र शुक्ल के वासंतिक नवरात्र, आश्विन शुक्ल पक्ष के शारदीय नवरात्र तथा आषाढ़ और माघ शुक्ल के
नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। ये चारों नवरात्र साधकों के लिए अमोघ फलदायी
होते हैं।
वासंतिक नवरात्र में विष्णु पूजा की प्रधानता रहती है क्योंकि
रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। अत: इन नवरात्र में रामचरित मानस, रामायण के अखंड और नवान्ह पारायण पाठ करने
का विधान है। इन दिनों नवदुर्गा के रूप में देवी की नौ शक्तियों की पूजा की जाती
है।
जन्म कुंडली में कोई भी प्रतिकूल ग्रह नीच या शत्रुक्षेत्रीय
प्रभाव में होकर अनिष्टकारक हों, उनकी
दशा-अंतर्दशा में अनिष्ट प्रभाव पड़ रहा हो या अनिष्ट की आशंका हो तो नवरात्र में
देवी की पूजा-आराधना से सभी नौ ग्रह और बारह राशियों के प्रतिकूल प्रभाव शांत होकर
घर में सुख, समृद्धि तथा शांति की प्राप्ति होती है।
दुर्गा पाठ में रखें सावधानी
सप्तशती की पुस्तक को हाथ में लेकर पाठ करना वर्जित है। अत:
पुस्तक को किसी आधार पर रखकर ही पाठ करना चाहिए। मानसिक पाठ नहीं करें वरन् पाठ
मध्यम स्वर से स्पष्ट उच्चारण सहित बोल कर करना चाहिए। अध्यायों के अंत में आने
वाले ‘इति’, ‘अध्याय:’ एवं ‘वध:’
शब्दों का प्रयोग वर्जित है। दुर्गा पाठ को देवी के नवार्ण मंत्र
ऊँ ऐं ह्नी क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ से संपुटित करें
यानी पाठ के ठीक पहले और तुरन्त बाद इस मंत्र के 108 बार
जप करें। नौ अक्षरों के उक्त नवार्ण मंत्र के जाप में अन्य मंत्रों की तरह ऊँ नहीं
लगता है। अत: इसे प्रणव ऊँ रहित ही जपना चाहिए।
घट स्थापना और जवारे
नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में प्रात: 6.10 से 10.10 बजे तक
घट स्थापना करें। पीली मिटटी में जौ के जवारे बोएं। मिट्टी के घड़े में जल भरें
उसमें रोली, चावल और समुद्र फेन (पंसारी के यहां उपलब्ध
है) डाल कर सकोरे से ढककर नारियल रखें, आम-अशोक के लहरे
(पत्ते) लगाएं, मोली बांधें, फूल
माला चढ़ाएं तथा घी, रोली, हल्दी
से स्वास्तिक बनाकर इसे पूजा स्थल के ईशान कोण में स्थापित कर दें। वरुण रूपी कलश
में सभी देवताओं का वास माना जाता है। अत: समस्त देवी-देवताओं का ध्यान कर कलश में
उनका आह्वान करें।
ऐसे करें सप्तशती के पाठ
पूजा स्थल को शुद्ध-साफ करके घी का दीपक जलाएं। सर्व प्रथम
गणपति अम्बिका का षोडषोपचार पूजन, कलश
पूजा, पंच लोकपाल, दस दिकपाल,
गौर्यादि षोडश मातृका, नवग्रह, अखंडदीप पूजन आदि प्रतिदिन करें। इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती के 13
अध्यायों का पाठ करें।
सप्तशती के विधिवत पाठ में शापोद्धार सहित षड़ांग
विधि
कवच, अर्गला,
कीलक और तीनों रहस्य इन छह अंगों सहित देवी का पाठ करना चाहिए।
पाठ समाप्ति के तुरन्त बाद पुन: 108 बार नवार्ण मंत्र के
जप करके पाठ को संपुटित कर लें। पुन: पूर्ववत शापोद्धार, उत्कीलन
और मृत संजीवनी विद्या के मंत्र जप करें।
इसके पश्चात् ऋवेदोक्त देवीसूक्त, प्राधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य, मूर्ति रहस्य, सिद्धिकुंजिकास्तोत्र के पाठ
करें। क्षमा प्रार्थना, भैरवनामावली के पाठ, आरती तथा मंत्र पुष्पांजलि के साथ पाठ का समापन करें। विधिवत पाठ न कर
सकने वाले व्यक्ति नवरात्र में व्रत रखकर हवन कर सकते हैं। इससे भी लाभ मिलता है।
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