8 मार्च 2013

मैहर वाली मां शारदा

भारत के मध्य प्रदेश की पवित्र नगरी मैहर में स्थित है माँ शारदा का भव्य मंदिर जो देश के प्रमुख शक्ति पिठों में से एक है. माँ शारदा देवी का यह मंदिर प्रकृति के मनोरम दृश्यों से घिरा हुआ है इसके आस पास सुंदर वन क्षेत्र हरी भरी पहाड़ीयां स्थित है जो मंदिर के धार्मिक स्वरूप को और भी ज्यादा निखारती हैं. माँ शारदा का यह मंदिर त्रिकूट पर्वत के शिखर पर स्थित है जो दूर से ही भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है और जहाँ जाने की चाह हर भक्त के मन में समाई होती है.
त्रिकूट पर्वत शिखर पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं का पवित्र शक्ति स्थल है जहाँ जाकर सभी कि मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है माना जाता है कि यहाँ आने वाले सभी भक्त देवी के दर्शन को पाकर अपने संकटों से मुक्त हो जाते हैं. शारदा देवी का यह शक्ति स्थल एक धाम है जिसमें नृपल देव द्वारा सामवेदी की स्थापना की गई और उसके पश्चात इस मंदिर का महत्व कई गुना बढ गया और अनेकों भक्त यहाँ आने लगे मंदिर की महत्ता का पता यहाँ आने वाले भक्तों की संख्या को देखकर ही लगाया जा सकता है. 
माँ शारदा देवी का यह भव्य मंदिर पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा है इसमें से एक कथा अनुसार जब देवी सती पिता दक्ष द्वारा किए गए अपने पति भगवान शिव के अपमान को सहन न सकीं तो वह वहाँ मौजुद यज्ञ के हवन कुंड में कूद जाती हैं इस घटना से चारों ओर कोहराम मच जाता है भगवान शिव यज्ञ को तहस नहस कर देते हैं
देवी सती के शव को यज्ञ की अग्नि से निकाल कर अपने कंधों में उठाए ब्रह्माण में विचरने लगते हैं उस समय माँ सती के अंग अनेक स्थानों पर गिरते जाते हैं और जहाँ भी उनके यह अंग गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाए. इस स्थान पर देवि सती का हार गिरा था जिस कारण इस जगह को माई का हार कहा जाने लगा और वर्तमान में यह नाम बदल कर मैहर हो गया. 
माता शारदा के बारे मे विस्तृत वर्णन दुर्गा सप्तशती एवं देवी भागवत पुराण में भी मिलता है इस मंदिर के विषय में एक अन्य कथा प्रचलित रही है जिसके अनुसार आल्हा नामक एक भक्त हुए थे जो माँ शारदा माता के परम भक्त थे उन्होंने देवी की यहाँ खूब अराधना की और कठोर तपस्या की उनकी भक्ति से प्रसन्न हो माँ शारदा ने उन्हें यहाँ साक्षात दर्शन दिए और उन्हें अपनी भक्ति का वरदान दिया था.  
मंदिर से शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं जिनसे इस मन्दिर की प्राचीनता एवं धार्मिक महत्व का प्रतिपादन होता है. यह शिलालेख माँ शारदा की मूर्ति के नीचे देखे जा सकते हैं. पहले इस मन्दिर में पशुओं की बली का भी प्रचलन था परंतु बाद में जैन दर्शनार्थियों मतों से प्रभावित होकर यहाँ के राजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ने मन्दिर में बलि प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया. मैहर क्षेत्र के संदर्भ में भी कुछ साक्ष्य प्राप्त होते हैं जिनके अनुसार इस स्थान का नाम महेन्द्र के नाम से जाना जाता है. 
यहाँ आने वाले सभी लोगों की खाली झोलियों भर जाती हैं राजा हो या रंक सभी वर्ग के लोग श्रद्धा भक्ती के साथ इस स्थन पर आते हैं ओर माँ के दर्शनों की कामना करते हैं नव विवाहित दंपति यहाँ आकर अपने गृहस्थ सुख की कामना करते हैं. मंदिर में आकर मन को असीम शांति व आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है. माँ शारदा मंदिर में विशेष उत्सव आयोजन भी होते हैं चैत्र व अश्विन माह के नवरात्रों के पावन समय मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ मौजूद रहती है इस अवसर पर मंदिर में अनेक धार्मिक कार्यक्रम संपन्न किए जाते हैं. इस अवसर पर विशेष बसों व रेलगाडी़यो का इंतज़ाम किया जाता है. 

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