28 फ़रवरी 2013

नाम के पहले अक्षर से जाने रोमांस का इतिहास

नाम के पहले अक्षर की मदद से न सिर्फ आप स्वयं के बारे में और अपने वेलेंटाइन के बारे में जान सकते हैं बल्कि अपनी मोहब्बत के बारे में भी अनुमान लगा सकते हैं तो आइए जानते हैं क्या कहती है आपकी प्रेम कहानी :
ए- यदि आपका नाम अँग्रेजी के अक्षर ए से शुरु होता है तो आप ज्यादा रोमांटिक नहीं हैं। पर आप कुछ भी कर गुजरने में विश्वास रखते हैं। आपका नजरिया हमेशा नफे नुकसान की ओर रहता है। जैसा आप देखते हैं वैसा ही आपको चाहिए। आपके पास फ्लर्ट करने का समय नहीं है। जब बात प्रेम की आती है तो आप का काम दबे-छिपे इशारों से नहीं बनता। शारीरिक आकर्षण आपके लिए महत्वपूर्ण है। आप अपने मनचाहे प्रीतम को पाने के लिए कड़ी चुनौती का सामना कर सकते हैं। आप आकर्षक और सेक्सी हैं।

बी- आप बहुत संवेदनशील हैं। आपको रोमांस, पार्टी जैसी बातों में बहुत मज़ा आता है। आपको अपने प्रेमी/प्रेमिका से तोहफे लेना पसंद है। आप यह चाहते हैं कि कोई आपको महत्व दे और आप भी दूसरों को महत्व देना पसंद करते हैं। आप अपने मन की बात बताने में कठिनाई महसूस करते हैं और उसे अपने तक ही रखना पसंद करते हैं। आपको नए-नए अनुभव लेने में आनंद आता है। अगर थोड़ा भी आपका कैरेक्टर गड़बड़ हुआ तो आपके जैसा बदनाम इंसान कोई नहीं।

सी- आप बेहद सोशल हैं और आपके लिए कोई भी रिश्ता बड़े महत्व का है। आपको रिश्तों में गर्माहट और नजदीकियाँ पसंद हैं। आप सामाजिक रूप से सम्मान पाना चाहते हैं और इसके लिए हमेशा अच्छे दिखने का प्रयास करते हैं। आप अपने प्रेमी/प्रेमिका को दोस्त या अच्छे साथी के रूप में देखते हैं। आप सेक्सी और भावुक हैं और चाहते हैं कि कोई आपकी तारीफ हमेशा करता रहे।

डी- जब आप किसी चीज को पाना चाहते हैं तो उसे पाकर ही रहते हैं। और तन-मन से उसी में लगे रहते हैं। आप आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हैं। आप दूसरों का ख्याल रखने में खुशी महसूस करते हैं। किसी की समस्या को आप अपनी समस्या मानकर उसे हल करने में जुट जाते हैं। आप बेहद सेक्सी, आकर्षक, वफादार और रिश्तों में पूरी तरह से जुड़ जाने वाले हैं। आप को कुछ अलग हटकर हमेशा पसंद आता है। आप कभी-कभी बेहद ईर्ष्यालु और स्वार्थी हो जाते हैं। आपको खुले दिल के लोग पसंद आते हैं।

ई- बातें करना आपकी कमजोरी है। यदि आपका प्रेमी/ प्रेमिका अच्छी तरह आपकी बात पर ध्यान नहीं देता तो आपका ‍रिश्ता ही खतरे में पड़ जाता है। किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता आपको प्रभावित करती है। आपको विवादग्रस्त बातों में पड़ना अच्छा लगता है। आपको फ्लर्ट करने में बहुत मजा आता है आप इसे प्रेम से भी ज्यादा महत्व देते हैं। लेकिन जब आप एक बार दिल दे देते हैं तो उसके प्रति वफादार हो जाते हैं। यदि आपको अच्छा प्रेमी नहीं मिलता तो आप किताब पढ़ते हुए सोना पसंद करते हैं।

एफ- आप आदर्शवादी और रोमांटिक हैं। अपनी चाहत को महत्व देते हैं। आप हमेशा अच्छे से अच्छे साथी की तलाश में रहते हैं। आप फ्लर्ट हैं लेकिन अच्छा साथी पा लेते हैं तो फिर फ्लर्टिंग छोड़ देतें है। आप भावुक, सेक्सी और आकर्षक हैं। लोगों के बीच आप प्रदर्शन करने में विश्वास रखते हैं। आप जन्मजात रोमांटिक हैं। और नाटकीय बातों में खोए रहना आपका पसंदीदा शगल है। आप एक अच्छे प्रेमी साबित हो सकते हैं।

जी- आपको अपने कैरेक्टर से ज्यादा अपने मतलब का प्यार पसंद है। किसी भी व्यक्ति को अपने जाल में फँसाना कोई आपसे सीखे। आपको ऐसे साथी की तलाश रहती है जो आपके आर्थिक स्तर को बढ़ाए। वादा करके निभाने का ढोंग आप बखूबी रच लेते हैं। आप अपने 'गलत' यानी वैधानिक रूप से अमान्य प्यार के प्रति समर्पित रहते हैं।

एच- आप बेहद संकोची और संवेदनशील हैं। आप मन ही मन प्यार करने में यकीन करते हैं लेकिन खुलकर उसे स्वीकार करने में डरते हैं। आपको अपनी इज्जत और मान सम्मान से बहुत प्यार है। किसी एक चीज से बँधकर रहना आपको पसंद है। यदि आपको प्रेरणा मिले तो आप कोई भी काम कर सकते हैं। प्रेम में किसी का दिल दुखाना आपको पसंद नहीं और नहीं चाहते कि कोई आपका दिल दुखाए।

आई- आप प्रशंसा और प्यार के दीवाने हैं। आपको लक्जरी और संवेदनशीलता पसंद आती है। आपको सोच समझकर काम करने वाले लोग पसंद आते हैं। अपने प्रेमी में आप ये गुण देखना पसंद करते हैं। आपको नासमझ लोग पसंद नहीं लेकिन वह नासमझ आपसे सलाह माँगे तो आप उसे पसंद करने लगते हैं। आप संवेदनशील और सेक्सी हैं लेकिन कभी-कभी आप निराश महसूस करते हैं।

जे- आप हर तरह से लाजवाब हैं! बेहद खूबसूरत और बेहद ईमानदार। प्यार के मामले में थोडे चूजी और प्रोफेशनल। बहुत सोच-समझ कर निर्णय लेते हैं और अकसर आपका निर्णय सही निकलता है। अपनी भावनाओं को छुपाना बखूबी जानते हैं। लेकिन जब रोमांटिक होते हैं तो सारी कायनात आपके प्यार को देखकर अचंभित हो जाती है फिर आपके पार्टनर का घबराना कोई बड़ी बात नहीं।

के- आप बेहद रोमांटिक हो सकते हैं और प्यार में ग्लैमर पसंद करते हैं। पार्टनर का होना आपके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। आपको प्रेम के प्रदर्शन में कोई संकोच नहीं है आप हमेशा बाजी खेलने को तैयार रहते हैं। नए पार्टनर्स के साथ संबंधों में आप सकुचाते नहीं। पर आपको बुद्धिमान लोग भाते हैं। यदि आपका पार्टनर समझदार नहीं है तो आप उसके साथ अधिक समय तक नहीं निभा सकते।

एल- आप बेहद रोमांटिक हैं पर यह भी सोचते हैं कि प्यार तकलीफ ही देता है। आपको किसी तकलीफ में पड़े व्यक्ति से सहानुभूति होती है जो प्यार में बदल जाती है। अपने प्रेमी को मुसीबत से उबारने में आप सुकून महसूस करते हैं। आप गंभीर, आकर्षक और सपने देखने वाले हैं। आप अपने आपको कल्पना से बहलाए रखना पसंद करते हैं। आपकी काल्पनिक दुनिया फिल्मों से प्रेरित होती है। आप इस दुनिया के बारे में किसी को नहीं बताते, अपने साथी को भी नहीं।

एम- आप भावुक और गहरे डूबे हुए व्यक्ति हैं। जब आप रिश्ते में पड़ते हैं तो उससे पूरी तरह जुड़ जाते हैं। फिर आपको कोई नहीं रोक सकता। आपको ऐसे ही साथ की तलाश रहती है जो आपको इसी तरह टूटकर प्यार करे। आप हर काम में हाथ डालकर अपने आपको आजमाना पसंद करते हैं। आप सामाजिक व संवेदनशील हैं। कभी-कभी आपको फ्लर्ट करना अच्छा लगता है और प्रेमी की देखभाल एक बुजुर्ग की तरह करते हैं।

एन- आपको प्रेरणा की लगातार जरूरत है क्योंकि आप बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं। आप एक साथ कई संबंधों को निभाने में सक्षम हैं। पूरी आजादी में आपका विश्वास है। वैसे तो आप संवेदनशील और आकर्षक हैं लेकिन दुनिया के सामने अपना प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहते हैं। नाटकीय तरीके से प्रेम करने में आपको बहुत आनंद आता है। लेकिन आपको प्यार बहुत हाथ-पैर मारने के बाद ही मिलता है।

ओ- आप बहुत शर्मीले लगते हैं लेकिन प्यार संबंधी बातों में आप छुपे रुस्तम हैं। आप अपनी इस ऊर्जा का उपयोग पैसे कमाने में और पद प्राप्त करने में पसंद करते हैं। आपके पास प्रेम संबंधी कई अवसर आएँगे। आप आकर्षक, डूबकर प्यार करने वाले हैं और अपने साथी में भी यही बात चाहते हैं। आपके लिए प्रेम एक गहरी भावना है और हर किसी से नहीं हो सकता। लेकिन आपको कोई बाँधकर रखे यह आपको मंजूर नहीं।

पी- आपको समाज का बहुत ख्याल रहता है। आप ऐसा कोई काम करना पसंद नहीं करते जो आपकी छवि को नुकसान पहुँचाए। आपके लिए बाहरी सुंदरता बहुत मायने रखती है इसलिए आपको सुंदर साथी की तलाश है। बुद्धिमान लोग भी आपको आकर्षित करते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि आप अपने साथी को ही अपना शत्रु समझते हैं और प्यार के दौरान लड़ना-झगड़ना भी चलता रहता है। आपको चोरी छुपे फ्लर्ट करने में भी बहुत मज़ा आता है।

क्यू- आपको कुछ न कुछ करते रहने में मज़ा आता है। आपके पास बहुत ऊर्जा है। आपके साथी के लिए आपके कदम से कदम मिलाकर चल पाना थोड़ा कठिन होता है। आप बहुत जोशीले किस्म के प्रेमी हैं और लोग आपके प्रति सहज ही आकर्षित हो जाते हैं। आपको रोमांस, फूल और दिल ये सभी चीजें पसंद हैं। आपको बातें करने वाले लोग भी विशेष रूप से पसंद हैं।

आर- आपको फालतू बातों के बजाय सिर्फ काम की बातों में ही दिल लगाना अच्छा लगता है। आपको अपने स्तर के लोग ही पसंद आते हैं और यदि आपका साथी आपसे भी ज्यादा ऊँचे स्तर का हो तो और भी अच्छा है। आपको हमेशा दिमागदार लोग ही पसंद आते हैं। लेकिन शारीरिक सुंदरता भी आपके लिए बहुत मायने रखती है। आपको गर्व करने लायक पार्टनर की तलाश रहती है।

एस- आप रहस्यमयी, अपने आप में रहने वाले और शर्मीले हैं। प्रेम की भावना से ओत-प्रोत, संवेदनशील और जुनूनी हैं पर यह बात आप जाहिर नहीं होने देते हैं। जब कोई आपके बेहद करीब आता है तब ही उसे यह बात पता चलती है। अपने प्यार को आप बेहद गंभीरता से लेते हैं। आपमें सही व्यक्ति के मिलने तक इंतजार और सब्र करने की प्रवृत्ति है। प्यार में छिछोरापन आपको कतई बर्दाश्त नही।

टी- आप बहुत संवेदनशील, बातों को गुप्त रखने वाले और प्रेम के मामले में निष्क्रिय से हैं। आपको ऐसे पार्टनर की जरूरत है जो आपको प्रेरणा देता रहे। संगीत, रोमांस और हल्का प्रकाश आपको जगाने के लिए काफी है। आप प्यार में मुश्किल से पड़ते हैं लेकिन जब पड़ जाते हैं तो आपका उससे बाहर निकलना मुश्किल है। प्यार में आप रोमांटिक, आदर्शवादी व बहुत गहरे उतरने वालों में से हैं।

यू- आप जोशीले और आदर्शवादी हैं। जब आप अपने प्रेमी के साथ नहीं होते तब भी उसकी यादों में खो रहते हैं। आपको हमेशा सबकी प्रशंसा पाना पसंद है। आप रोमांस को चुनौती की तरह देखते हैं। रोमांच, नई खोज और आज़ादी आपको प्रिय है। अपने प्रेमी/प्रेमिका को उपहार देना आपको पसंद है। आप यह भी चाहते हैं कि आपका प्रिय हमेशा सबसे अच्छा लगे। खुद से ज्यादा साथी की खुशी चाहते हैं।

व्ही- आप स्वयं के लिए जीने वाले हैं। आपको आजादी, जोश और अपना अलग स्थान चाहिए। आप तब तक इंतज़ार करते हैं जब तक कोई आकर आपसे प्यार का इज़हार न कर दे। आपके लिए किसी को जानने का मतलब उसकी साइकोलॉजी को समझना है। खुले दिल वाले लोग आपको प्रभावित करते हैं। आपके प्रेमी और आपमें हमेशा उम्र का अंतर रहेगा। आप चाहते हैं कोई आपको आपकी कमियों के बावजूद प्यार करे लेकिन ऐसा होता नहीं है।

डब्ल्यू- आप कुछ गर्वीले, दृढ़ विचारों वाले और प्यार के मामले में ना-ना करने वाले हैं। आपका ईगो आपको आगे बढ़ने से रोकता है। रोमांटिक और आदर्शवादी होने के साथ आप अपने प्रेमी को वैसे ही पसंद करते हैं जैसा वह है यानी आपको बनावट पसंद नहीं है। आपको प्यार का खेल खेलने में आनंद आता है। अगर थोड़ा सा घमंड कम करें तो आपको बेहद खूबसूरत साथी शीघ्र ही मिल सकता है।

एक्स- आप बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं। आप एक साथ कई प्रेम संबंधों को निभाने की ताकत रखते हैं। आपको लगातार बोलते रहने में भी मजा आता है। आपके अपनी तरफ से कई प्रेम संबंध होते हैं यानी उनमें से कई काल्पनिक होते हैं। आप ख्वाबों में अव्वल दर्जे के सेक्सी हैं लेकिन हकीकत में ऐसे संयमित होने का ढोंग करते हैं जैसे आपके जैसा सीधा कोई नहीं। अपने अल्फाबेट की तरह ही प्यार के मामले में आप गलत इंसान है।

वाय- आप संवेदनशील और आत्मनिर्भर हैं। आप संबंधों में ज्यादा हक जताते हैं जिससे आपका रिश्ता लंबे समय तक नहीं टिकता। प्रेम में आपको स्पर्श में बहुत आनंद आता है जैसे हाथ पकड़कर बैठना, कंधे पर हाथ रखकर चलना। आप अपने प्रेमी को बार बार जताते हैं कि आप कितने अच्छे प्रेमी हैं। आपको उनकी प्रतिक्रिया भी चाहिए। आप खुले दिल के और रोमांटिक हैं।

जेड- आप सामान्य रूप से रोमांटिक हैं। जीवन में चीजों आसानी से लेना आपका शौक है और प्यार में भी यही बात आपको सच लगती है। आपको कहीं भी किसी से भी प्रेम हो सकता है। हर शख्स में आप खूबी तलाश लेते हैं। इसी कारण से लोग आपसे प्रभावित हो जाते हैं। आप प्रेम के मामले में खिलाड़ी हैं। आपको कोई खास फर्क नहीं पड़ता जब ब्रेक अप होता है। आप तुरंत नई तलाश शुरू कर सकते हैं।

27 फ़रवरी 2013

‘‘ख्वाजा इस्माइल चिश्ती’’

‘सामप्रदायिक सद्भावना के प्रतिक हजरत ख्वाजा इस्माइल चिश्ती अजमेर शरीफ वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के भांजे हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग अजमेर नहीं जा पाते उन्हें ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की दरगाह पर सजदा करने से वह फल स्वतः मिल जाता है.......’
"ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की दरगाह"
सदियों से भारत महान संत, महात्माओं व सूफियों की धारती रहीं है, जिन्होंने इंसनियत के टूटे धागों को जोड़कर लोगों को मानवता की सेवा करने व नेकनियती की राह पर चलने की प्रेरणा दी है। हजरत ख्वाजा इस्माइल चिश्ती भी ऐसे ही संतों में गिने जाते हैं। ख्वाजा साहब का पवित्र दरगाह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में स्थित है।
मिर्जापुर मां विन्ध्यवासिनी शक्ति पीठ के लिए पूरे भारत में विख्यात है। इस शक्तिपीठ से लगभग दो-तीन फर्लांग में पतित पावनी मां गंगा के तट पर कंतित गांव बसा है। इस गांव के खुले भू-भाग में हजरत ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की दरगाह है, जहां हर वर्ष सालाना उर्स लगता है। ख्वाजा साहब के कारण कंतित शरीफ के नाम से प्रसिद्ध इस गांव में लगने वाला उर्स मेला सामाजिक सद्भावना की मिसाल पेश करता आया है।
इस उर्स मेले में पूरे भारतवर्ष से भारी संख्या में हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई आदि सभी धार्मों के लोग जियारत करने आते हैं। मुरादें मांगते हैं तथा पूरी होने पर चादर चढ़ाते हैं और सिरनी बांटते हैं। इस मेले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि बाबा की मजार पर उर्स मेला आरम्भ होने के पूर्व पहली चादर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद मेला शुरू होता है। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में हिन्दू परिवार द्वारा पहला चादर चढ़ाने की प्रथा सदियों पुरानी है।
लगभग 40-50 वर्षो से, चादर चढ़ाने का काम नगर के कसरहट्टी मोहल्ला निवासी हिन्दू कसेरा परिवार के जवाहर लाल कसेरा करने लगे। तब से उन्हीं के परिवार द्वारा मजार पर चादर चढ़ायी जाती है। 70 वर्ष पार कर चुके जवाहर लाल कसेरा के पुत्र बताते है कि बाबा कि मजार पर चादर चढ़ाने से पूर्व उनके परिवार की माली हालत काफी नाजुक थीं। उनकी मां एक लाइलाज बीमारी की चपेट में आ गयी थी। वंश चलने की उम्मीद खत्म हो गयी थी। इन कारणों से हमारे पिताजी की बाबा पर असीम आस्था बनती चली गई। आज बाबा की मेहरबानी व कृपा के चलते हम नौ भाई-बहन हैं। हमारे व्यवसाय में दिनों-दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। अपने पुश्तैनी पीतल के बर्तन के व्यवसाय के अलावा हमने मेडिकल स्टोर भी खोल लिया है। पिता जी के वृद्ध होने के कारण अब बाबा की मजार पर हम मेले में पहले पहला चादर चढ़ाकर बाबा का सजदा करते हैं।
जन साधारण की मान्यता है कि जो शख्स अजमेर के ख्वाजा गरीब नबाज की दरगाह तक नहीं पहुँच पाते हैं, वे कंतित शरीफ बाबा की दरगाह में मन्नत मांगते हैं और उसके पूरा होने पर चादर चढ़ाते हैं। इससे उन्हें स्वतः ही अजमेर शरीफ वाले बाबा की दुआ प्राप्त हो जाती है।
मिर्जापुर वाले हजरत ख्वाजा सैयद इस्माइल चिश्ती इन्हीं अजमेर वाले ख्वाजा नवाज के सगे भांजे थे। इनका जन्म अरबी तारीख 13 सावानुल मुआज्ज्म 579 हिजरी दिन सोमवार की सुबह संजरिस्तान (ईरान) में हुआ था। इनके पिता हजरत ख्वाजा सैयद इसहाक कादरी बड़े पीर साहब शेख अब्दुल कादिर जिलानी बगदादी के साहबजादे के मुरीद थे और उन्हीं से खिलाफत भी हासिल थी।
"उर्स के समय सजा दरगाह"
ख्वाजा इस्माइल चिश्ती ने अपने वालिद से मजहब की तालीम हासिल की थी। बताते हैं ख्वाजा गरीब नवाज को मदीने वाले हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लाहों अली मुसल्लम ने वसारत दी, “ऐ मोइनुद्दीन, तुम अजमेर जाओ।“ मदीने वाले हजरत की वसारत पर ख्वाजा गरीब नवाज चलने लगे तो इनकी बहन उम्मुल खैर का लाड़ला बेटा इस्माइल चिश्ती भी अपने वालिद-वालिदा से मामा के साथ जाने की इजाजत मांगने लगे। इस्माइल चिश्ती के वालिद-वालिदा ने न केवल उन्हें इजाजत दी बल्कि वे भी खुदा की बंदगी के लिए उनके साथ चलने को तैयार हो गए।
यह नूरानी काफिला जगह-जगह पड़ाव डालता हुआ लाहौर पहुंचा। यहां कुछ दिनों तक कयाम (विश्राम) किया। दौराने कयाम ख्वाजा इस्माइल चिश्ती के वालिद हजरत ख्वाजा सैयद इसहाक कादरी बहुत सख्त बीमार हो गए। इसी बीमारी के दौरान कुछ दिनों बाद वह अल्लाह को प्यारे हो गए। आज भी लाहौर में उनकी मजार शरीफ मौजूद है।
इसके बाद यह काफिला आगे बढ़ा और विभिन्न जगहों से होते हुए अजमेर पहुंच गया। अजमेर पहुँचने के बाद गरीब नवाज ने इस्माइल चिश्ती को अवधा की तरफ जाने का आदेश दिया।
ख्वाजा गरीब नवाज के आदेश पर खुदा की बंदगी करते हुए ख्वाज इस्माइल चिश्ती अपने परिवार व कुछ अनुयायियों के साथ विभिन्न जगहों पर होते हुए लखनऊ पहुंच गए। इन्हें लखनऊ आए अभी चन्द महीने ही बीते थे कि एक दिन स्वप्न में ख्वाजा गरीब नवाज ने इस्माइल चिश्ती से कहा, “अब तुम मिर्जापुर की तरफ कूच करो। वहां लोगों को तुम्हारी सख्त जरूरत है, क्योंकि वहां के लोगों पर राजा के जुल्म का कहर टूट रहा है। हर व्यक्ति एक-दूसरे के खून का प्यासा है।“
ख्वाजा गरीब नवाज की वसारत पर ख्वाज इस्माइल चिश्ती लखनऊ से मिर्जापुर की तरफ चल पड़े। बताते है, उस समय गहरवार राजपूत वंश शासन परम्परा में अवध्राज के अंर्तगत शासित राज्य में राजा दानव राय का शासन था। दानव राय प्रतापी और न्याय प्रिय शासक के रूप में जाना जाता था, इसलिए उसे राज दइया नाम से प्रसिद्धि मिली थी।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार कंतित नाग राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। यह राजा दइया की भी राजधानी थी। उसका विशाल किला ओेझला नदी के किनारे से विन्ध्यवासिनी तक स्थित था। किले के उत्तरी छोर पर उस समय चेतगंज के समीप से गंगा बहती थी। राजा दइया ने अपनी रानियों के स्नान के लिए गंगा से मिलता हुआ एक नाला बनवा रखा था, जो ओझला नदी में मिलता था।
राज दइया प्रतापी होने के साथ ही आततायी भी था। उसने गंगा के जल को स्पर्श करने पर एक समुदाय विशेष के लोगों पर पाबंदी लगा रखी थी। राजा की आज्ञा न मानने वाले को दण्डित किया जाता था। उसका मानना था कि हिन्दू धर्म के अलावा अन्य लोगों के स्पर्श से गंगा अपवित्र हो जाएगी। राजा की तानाशाही इतनी बढ़ गयी कि ओझला में समुदाय विशेष के लोगों के स्नान पर रोक लगा दी गयी।
ख्वाजा गरीब नवाज की वसारत पर जब इस्माइल चिश्ती साहब ने मिर्जापुर में कदम रखा तो उन्होंने सर्वप्रथम अपना पड़ाव कंतित गांव में स्थित शाही मस्जिद में किया। वह यहीं पर नमाज पढ़ते, इबादत करते और लोगों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते।
विन्ध्यवासिनी की गोंद में प्रकृति के वैभव से परिपूर्ण गंगा के तट पर स्थित कंतित गांव ने ख्वाजा साहब का मन जीत लिया। ख्वाजा साहब को जब राजा दइया के कठोर जनहित विरोधी फैसलों की जानकारी हुई तो उन्होंने कंतित को ही अपनी कर्मभूमि बनाकर पीडित मानवता का उद्धार करने की ठान ली।
ख्वाजा साहब ने पहले अपने उपदेशों से लोगों में फैले भ्रम को दूर करने का प्रयास किया, लेकिन इससे उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपना चमत्कार दिखाना प्रारम्भ कर दिया। बताते हैं, ख्वाजा के अनुयायी एक दिन गंगा नदी के तट पर पहुंचे तो घाटन देव नामक एक सिपहसालार ने उन्हें रोक दिया।
"ख्वाजा साहब की मजार"
यह जानकारी जब ख्वाजा साहब को हुई तो उन्होंने अपने प्रभाव से घाट पर रखे पत्थर के हाथी से सजीव रूप में गंगा की लहरों में रात्रि स्नान करने के बाद उसकी चिघांड सुनवाई। बाबा के इस चमत्कार की चारों तरफ चर्चा होने लगी। राजा के सिपहसालारों ने यह जानकारी राजा को दी तो उसने ख्वाजा साहब को युद्ध के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया। शान्तिप्रिय ख्वाजा साहब यह नहीं चाहते थे। वे अपने चमत्कारों से राजा का मन बदलने को प्रयास करते रहे।
लेकिन दिन पर दिन राजा का व्यवहार ख्वाजा साहब के प्रति कठोर होता गया। अब तो उन्हें बार-बार सिपहसालारों एवं सौनिकों द्वारा परेशान भी किया जाने लगा। आखिरकार जब ख्वाजा साहब ने सोच लिया कि राजा दइया नहीं मानने वाला है, तो उन्होंने अपने वजू के पात्र को अल्लाह का ध्यान कर पलट दिया। उसके पलटते ही जैसे भूचाल आ गया और राजा का पूरा किला तहस-नहस हो गया। इसके अवशेष आज भी कंतित के गजिया में गंगा नदी के किनारे दिखाई पड़ता हैं।
राजा के आतंक से मुक्ति के बाद भी जीवनभर ख्वाजा साहब कंतित गांव में ही रहे और इसी जगह को अपना समझ कर लोगों को नेकनियती की राह पर चलने की प्ररेणा देते रहे।
छः रजक 671 हिजरी जुमे (शुक्रवार) की भोर में ख्वाजा साहब का इंतकाल हो गया। बाद में लोगों ने यहां पर इनकी मजार बना दी। बताते है, ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की मजार पर लगनेवाले उर्स मेले में हिन्दू परिवार द्वारा पहला चादर चढ़ाने का सिलसिला देवी अख्तार के जमाने से शुरू हुआ जो आज तक अनवरत चला आ रहा है।
ख्वाजा के प्रति देवी अख्तार की आस्था के बारे में भी एक दिलचस्प कहानी है। बताते हैं कि देवी अख्तार प्रतिदिन शाम के समय काम-धाम से खाली होने के बाद अपनी पत्नी से डलिया तैयार करवाते थे। उसमें फूल-माला, अगरबत्ती, दीपक आदि पूजा की सामग्री होती थी। उसे लेकर वह पूजापाठ के लिए घर से निकल जाते थे और रास्ते में पड़ने वाल सभी मंदिर, मस्जिद, मजार पर विधिवत पूजा-पाठ करके कंतित शरीफ मजार पर जाते थे।
एक दिन इत्तेफाक से काम-धन्धे में फस जाने के कारण उन्हें कुछ देर हो गई। उस दिन मौसम भी कुछ खराब था, फिर भी वह पूजा-पाठ और सजदा करने लिए घर से निकल गए। जगह-जगह पूजापाठ करते-करते रात्रि के लगभग 10 बज गए। फिर वह ख्वाजा साहब का सजदा करने कंतित की तरफ चल पड़े
उस समय रास्ते में पड़ने वाले ओझला नदी में पुल नहीं बना था। रह-रहकर बरसात होने लगती थी। अपनी धुन के पक्के देवी अख्तार के कदम तेजी के कंतित की तरफ बढ़े जा रहे थे। बरसात के कारण ओझला नदी उफान पर थी, पर वह हताश नहीं हुए और पानी में उतर गए। अभी वह थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि एक गड्ढ़े में पैर चले जाने से डलिया उनके हाथ से छूट कर पानी में गिर गई और लहरों के साथ बहने लगी।
निराश होकर देवी अख्तार ने ख्वाजा साहब की मजार की दिशा में देखा ही था कि लहरों के चक्रव्यूह में फस कर उनके पूजा की डलिया वापस उनके पास आ गई और पानी का बहाव भी कम हो गया। देवी अख्तार आराम से ख्वाजा साहब का सजदा कर वापस अपने घर आ गये।
इन सबके अलावा भी बाबा को मानने वाले बड़ी धूम-धाम से प्रत्येक उर्स मेले में दागर-चादर चढ़ाते हैं। इनमें एक परिवार हैं छोटा मिर्जापुर निवासी हाफिज मौलाना निसार अहमद चिश्ती निजामी का। आज से लगभग 125 वर्ष पूर्व इनके वंशज मुहम्मद गाजी ने अपनी किसी मनौती के पूर्ण होने पर बाबा के मजार पर चादर चढ़ानी शुरू की। इनके बाद इन्हीं के परिवार के भग्गल खलीफा इसे आगे चलाते चले आए। बाद में इनके पुत्र रहमतुल्ला ने यह दायित्व निभाया। बाद में उनके छोटे भाई सल्लामतुल्ला तो बाबा को इतना मानने लगे कि वह अपना अधिक-से-अधिक समय ख्वाजा साहब की मजार पर ही देने लगे। अब उनके वंशज पूरी श्रद्धा के साथ इस परम्परा को निभा रहे हैं।
ख्वाजा साहब के पास ही जहरत हाफिज लौंगिया पहलवान की भी मजार है। बताया जाता है यह ख्वाजा साहब से भी उम्रदराज थे। माना जाता है कि यह भी ख्वाजा साहब के साथ ही आये थे। ऐसी मान्यता है कि ख्वाजा साहब की जियारत करने के बाद इनकी जियारत करना बहुत जरूरी है।
लोगों का विश्वास है कि मानवता के कल्याण को समर्पित गरीब नवाज ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सगे भांजे ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की मजार पर अपना दुखड़ा रोने से तमाम लोगों का भला होता रहा है। बैऔलादों को औलाद, दरिद्र को धन-धान्य से भरने जैसी कई कहानियां ख्वाजा साहब से जुड़ी है।
बताते है एक व्यापारी अपनी सारी जमा-पूजी लगाकर कुछ सामान खरीद कर व्यापार करने जा रहा था। रास्ते में लुटेरे पूरा ट्रक सहित माल लूट ले गए। निराश व्यापारी बाबा की चौखट पर अपना दुखड़ा राने लगा। बाद में उसे लूटा गया माल ट्रक साहित वापस मिल गया। उसने इसे ख्वाजा साहब का चमत्कार मानकर उनकी मजार का जीर्णोद्धार करवा दिया।
विन्ध्याचल का शक्तिपीठ हिन्दु धार्मावलम्बियों के लिए जितनी आस्था का प्रतीक है, उतनी ही मान्यता कंतित के मजार को भी प्राप्त है। यह सभी धर्मों की आस्था का प्रतीक है। श्रद्धा और विश्वास से बाबा की चैखट पर मन्नत मांगने से बाबा उसे अवश्य पूरी करते हैं।

26 फ़रवरी 2013

रत्न संवारे सौन्दर्य व स्वास्थ्य

मानव जीवन में रत्न की उपयोगिता सिर्फ भाग्य को संवारने के लिए ही नही हैं, बल्कि आधुनिक वैज्ञानिक युग में रत्नों का उपयोग स्वास्थ्य और सौन्दर्य को निखारने के लिए ही किया जा रहा है। कहते हैं अपने समय में सौन्दर्य की बेताज मल्लिका क्लियोपेट्रा अपने सौन्दर्य में निखार लाने के लिए शुद्ध मोती रत्न को दूध मिश्रित पानी में कुछ घण्टों के लिए डाल देती बाद में पीने के लिए उसी पानी का प्रयोग किया करती।
यह सच है कि रत्न जडि़त आभूषण पुरूषों के साथ महिलाओं के सौन्दर्य में तो चार चाॅद लगाते ही है, इसके अलावा ये रत्न मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी इजाफा करते हैं। विज्ञान की कसौटी में रत्न की उपयोगिता साबित हो चुकी है। क्रिस्टल थेरैपी, रत्न चिकित्सा (जेम थेरेपी), रत्न विज्ञान (जेमोलाॅजी) का लाभ आज तमाम लोग ले रहे है। मेडिकल एस्ट्रोलाॅजी के अनुसार रत्नों के माध्यम से मनुष्य की विभिन्न बिमारियों को दूर भगाया जा सकता है। ब्रह्माण्ड में विचरण करने वाले ग्रहों से आने वाली विभिन्न प्रकाश किरणों को ये रत्न अपने अन्दर जज्ब कर लेते हैं। कुछ खास रत्न ग्रहों की प्रकाश रश्मियों को अपने हिसाब से नियंत्रित करते है। मेडिकल साइंस के अनुसार ग्रहों कमी प्रकाश रश्मियाॅ मानव के शरीर और मन पर प्रतिकूल प्रभाव को अनुकूल करके अनेक बिमारियों के इलाज में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। असली शुद्ध रत्न अल्फा, बीटा, गामा किरणों की तरह कंपन किरणें (रंेज आफ वाइब्रेशन) उत्सर्जित करते है।
इतना ही नहीं प्रत्येक रत्न का एक चुम्बकीय क्षेत्र भी होता है। कंपन किरणों का रंग और उनका चुम्बकीय क्षेत्र अनेक रोगों के इलाज मे काफी फायदा पहुॅचातें है। शायद इसी लिए ज्योतिष शास्त्र ने रत्नों के सटीक लाभ के लिए विधि-विधान पूर्वक धारण करने का कठोर नियम बनाया है। उपचारात्मक ज्योतिषशास्त्र (रिमेडीयल एस्ट्रोलाॅजी) नियम के अन्तर्गत रत्नों को धारण करने के अलग-अलग नियम और समय बताये गये है। सम्यक नियम और समय अनुसार विधि पूर्वक धारण करने पर ही रत्नों का वास्तविक लाभ प्राप्त होता है।
वाराणसी के सिगरा निवासी प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डा0 अनुप कुमार जायसवाल की माने तो इस धरती पर रहने वाले प्रत्येक मनुष्य की राशि के हिसाब रत्न को धारण करने की बात ज्योतिष शास्त्र में कहीं गयी है। ज्योतिष के अनुसार - मेष राशि वालों के लिए मूंगा, वृष राशि वालों के लिए हीरा, मिथुन राशि वालों के लिए पन्ना, कर्क राशि के लिए हीरा, वृश्चिक राशि के लिए मंूगा, धनु राशि के लिए पुखराज, मकर और कुम्भ राशि के लिए नीलम, मीन राशि वालों के लिए पुखराज धारण करने का विधान है। रत्न धारण करने से पूर्व रत्नों को अच्छी तरह से जाॅच परख लेना चाहिए। यदि किसी रत्न के अन्दर लाल रंग का धब्बा (ब्लड स्पाॅट) दिखाई पड़े तो उस रत्न को धारण नहीं करना चाहिए। रत्न को रात्रि में भी नहीं धारण करना चाहिए। रत्न जितना ही ज्यादा वजन और शुद्ध गुणवत्ता वाला होगा उसका प्रभाव भी उतना ही बेहतर और ज्यादा लाभदायक होगा। रत्नों को अंगुली में धारण करना श्रेयकर होता है। यदि कोई जातक इन्हें गले में या शरीर के किसी अन्य भाग में धारण करना चाहता है तो उसका उतना प्रभाव या लाभ नही मिलता जितना की अंगुली में धारण करने से मिलता है। कुल मिलाकर वर्तमान समय में बड़े पैमाने पर महिलाओं के साथ तमाम पुरूष भी रत्नों के माध्यम से न सिर्फ अपने बिगड़े ग्रह दशा को ठीक कर रहे है बल्कि इनसे अपने सौन्दर्य और स्वास्थ्य में भी इजाफा कर रहें है। वैसे रत्न हर प्रकार से मनुष्यों को लाभ पहुॅचाते है।

21 फ़रवरी 2013

आदिशक्ति माँ विंध्यवासिनी

मां विन्ध्यवासिनी
प्रयाग एवं काशी के मध्य विंध्याचल नामक तीर्थ है जहां माँ विंध्यवासिनी निवास करती हैं। श्री गंगा जी के तट पर स्थित यह महातीर्थ शास्त्रों के द्वारा सभी शक्तिपीठों में प्रधान घोषित किया गया है। यह महातीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम पीठ है जो गंगातट पर स्थित है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्।हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराणमें विंध्याचल-निवासिनीइन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है- विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी।
श्रीमद्देवीभागवतके दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकत्र्ता ब्रह्माजीने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपाको उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुवमनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ।
मां अष्टभुजा
त्रेतायुगमें भगवान श्रीरामचन्द्र सीताजीके साथ विंध्याचलआए थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर महादेव से इस शक्तिपीठ की माहात्म्य और बढ गया है। द्वापरयुगमें मथुरा के राजा कंस ने जब अपने बहन-बहनोई देवकी-वसुदेव को कारागार में डाल दिया और वह उनकी सन्तानों का वध करने लगा। तब वसुदेवजीके कुल-पुरोहित गर्ग ऋषि ने कंस के वध एवं श्रीकृष्णावतारहेतु विंध्याचलमें लक्षचण्डीका अनुष्ठान करके देवी को प्रसन्न किया। जिसके फलस्वरूप वे नन्दरायजीके यहाँ अवतरित हुई।
मार्कण्डेयपुराणके अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती(देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं, देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवेंयुग में शुम्भऔर निशुम्भनाम के दो महादैत्यउत्पन्न होंगे। तब मैं नन्दगोपके घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी।
लक्ष्मीतन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश:मिलता है। ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मीकी अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया। मूर्तिरहस्य में ऋषि कहते हैं- नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वकस्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं।
मां काली
श्रीमद्भागवत महापुराणके श्रीकृष्ण-जन्माख्यान में यह वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजीने कंस के भय से रातोंरात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए। आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।
मन्त्रशास्त्रके सुप्रसिद्ध ग्रंथ शारदातिलक में विंध्यवासिनी का वनदुर्गा के नाम से यह ध्यान बताया गया है-
सौवर्णाम्बुजमध्यगांत्रिनयनांसौदामिनीसन्निभां चक्रंशंखवराभयानिदधतीमिन्दो:कलां बिभ्रतीम्। ग्रैवेयाङ्गदहार-कुण्डल-धरामारवण्ड-लाद्यै:स्तुतां ध्यायेद्विन्ध्यनिवासिनींशशिमुखीं पा‌र्श्वस्थपञ्चाननाम्॥
जो देवी स्वर्ण-कमल के आसन पर विराजमान हैं, तीन नेत्रों वाली हैं, विद्युत के सदृश कान्ति वाली हैं, चार भुजाओं में शंख, चक्र, वर और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं, मस्तक पर सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्र सुशोभित है, गले में सुन्दर हार, बांहों में बाजूबन्द, कानों में कुण्डल धारण किए इन देवी की इन्द्रादिसभी देवता स्तुति करते हैं। विंध्याचलपर निवास करने वाली, चंद्रमा के समान सुंदर मुखवालीइन विंध्यवासिनी के समीप सदाशिवविराजितहैं।
सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा। वन को संस्कृत में अरण्य कहा जाता है। इसी कारण ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी विंध्यवासिनी-महापूजा की पावन तिथि होने से अरण्यषष्ठी के नाम से विख्यात हो गई है।