14 अप्रैल 2013

नवरात्र में देवी की पूजा से


ग्रह और राशियों के प्रतिकूल प्रभाव होते है शांत

वैदिक ज्योतिष की गणना के अनुसार प्रतिवर्ष चार नवरात्र होते हैं। इनमें चैत्र शुक्ल के वासंतिक नवरात्र, आश्विन शुक्ल पक्ष के शारदीय नवरात्र तथा आषाढ़ और माघ शुक्ल के नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। ये चारों नवरात्र साधकों के लिए अमोघ फलदायी होते हैं।
वासंतिक नवरात्र में विष्णु पूजा की प्रधानता रहती है क्योंकि रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। अत: इन नवरात्र में रामचरित मानस, रामायण के अखंड और नवान्ह पारायण पाठ करने का विधान है। इन दिनों नवदुर्गा के रूप में देवी की नौ शक्तियों की पूजा की जाती है।
जन्म कुंडली में कोई भी प्रतिकूल ग्रह नीच या शत्रुक्षेत्रीय प्रभाव में होकर अनिष्टकारक हों, उनकी दशा-अंतर्दशा में अनिष्ट प्रभाव पड़ रहा हो या अनिष्ट की आशंका हो तो नवरात्र में देवी की पूजा-आराधना से सभी नौ ग्रह और बारह राशियों के प्रतिकूल प्रभाव शांत होकर घर में सुख, समृद्धि तथा शांति की प्राप्ति होती है।
दुर्गा  पाठ  में  रखें  सावधानी
सप्तशती की पुस्तक को हाथ में लेकर पाठ करना वर्जित है। अत: पुस्तक को किसी आधार पर रखकर ही पाठ करना चाहिए। मानसिक पाठ नहीं करें वरन् पाठ मध्यम स्वर से स्पष्ट उच्चारण सहित बोल कर करना चाहिए। अध्यायों के अंत में आने वाले इति’, ‘अध्याय:एवं वध:शब्दों का प्रयोग वर्जित है। दुर्गा पाठ को देवी के नवार्ण मंत्र ऊँ ऐं ह्नी क्लीं चामुण्डायै विच्चेसे संपुटित करें यानी पाठ के ठीक पहले और तुरन्त बाद इस मंत्र के 108 बार जप करें। नौ अक्षरों के उक्त नवार्ण मंत्र के जाप में अन्य मंत्रों की तरह ऊँ नहीं लगता है। अत: इसे प्रणव ऊँ रहित ही जपना चाहिए।
घट स्थापना और जवारे
नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में प्रात: 6.10 से 10.10 बजे तक घट स्थापना करें। पीली मिटटी में जौ के जवारे बोएं। मिट्टी के घड़े में जल भरें उसमें रोली, चावल और समुद्र फेन (पंसारी के यहां उपलब्ध है) डाल कर सकोरे से ढककर नारियल रखें, आम-अशोक के लहरे (पत्ते) लगाएं, मोली बांधें, फूल माला चढ़ाएं तथा घी, रोली, हल्दी से स्वास्तिक बनाकर इसे पूजा स्थल के ईशान कोण में स्थापित कर दें। वरुण रूपी कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है। अत: समस्त देवी-देवताओं का ध्यान कर कलश में उनका आह्वान करें।
ऐसे करें सप्तशती के पाठ
पूजा स्थल को शुद्ध-साफ करके घी का दीपक जलाएं। सर्व प्रथम गणपति अम्बिका का षोडषोपचार पूजन, कलश पूजा, पंच लोकपाल, दस दिकपाल, गौर्यादि षोडश मातृका, नवग्रह, अखंडदीप पूजन आदि प्रतिदिन करें। इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ करें। 
सप्तशती के विधिवत पाठ में शापोद्धार सहित षड़ांग विधि
कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य इन छह अंगों सहित देवी का पाठ करना चाहिए। पाठ समाप्ति के तुरन्त बाद पुन: 108 बार नवार्ण मंत्र के जप करके पाठ को संपुटित कर लें। पुन: पूर्ववत शापोद्धार, उत्कीलन और मृत संजीवनी विद्या के मंत्र जप करें।
इसके पश्चात् ऋवेदोक्त देवीसूक्त, प्राधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य, मूर्ति रहस्य, सिद्धिकुंजिकास्तोत्र के पाठ करें। क्षमा प्रार्थना, भैरवनामावली के पाठ, आरती तथा मंत्र पुष्पांजलि के साथ पाठ का समापन करें। विधिवत पाठ न कर सकने वाले व्यक्ति नवरात्र में व्रत रखकर हवन कर सकते हैं। इससे भी लाभ मिलता है।
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मालाएं एवं उनकी उपयोगिता


मालाएँ आमतौर से शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, पर कर्इ तरह की मालाएँ ऐसी भी होती है जो हमारे ग्रहों को अनुकूल कर हमें परेशानियों से बचाती हैं तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक होती है। साथ ही यह तंत्र मंत्र सिद्धि के लिए भी बहुत उपयोगी होती है। यहां हम विभिन्न तरह की मालाओं की उपयोगिता का संक्षिप्त विवरण दे रहें हैं।
स्फटिक की माला- देवी जाप के लिए स्फटिक माला से मंत्र शीघ्र सिद्ध हो जाता है। आर्थिक स्थिति में सुधार आती है। उच्च रक्तचाप के रोगियों को क्रोध शान्ति के लिए यह माला अचूक है।
सफेद चन्दन की माला- इसका उपयोग शान्ति पुष्टि कर्मों श्री राम, विष्णु अन्य देवता की उपासना में होता है। इसके धारण करने से शरीर में ताजगी का संचार होता है।
तुलसी की माला- विष्णु प्रिय तुलसी की माला विष्णु, राम, कृष्ण जी की उपासना हेतु सर्वोत्तम है। शरीर आत्मा की शुद्धि के लिए धारण करना उत्तम माना जाता है।
मूंगे की माला- मंगल ग्रह की शान्ति के लिए धारण करना उपयुक्त है हनुमान जी की साधना के लिए सर्वोत्तम है।
हकीक की माला- भाग्य वृद्धि सौभाग्य प्राप्ति के लिए इसका विशेष महत्व है। इसमें भूत-प्रेत बाधा दुर्भाग्य और कर्इ बुराइयों को नाश करने की विशेष शाक्ति होती है। मुसीबत आने पर यह टुट जाता है।
स्फटिक रुद्राक्ष माला- रुद्राक्ष स्फटिक माला शिवशक्ति का प्रतीक है। रुद्राक्ष निम्न रक्तचाप को स्फटिक उच्च रक्तचाप को नियंत्रित कर समन्वय बनाए रखता है। इस माला पर शिव शक्ति दोनों के जाप किये जाते हैं।
रुद्राक्ष सोने के दानों की माला- रुद्राक्ष के साथ सोने के दाने रुद्राक्ष की शक्ति में वृद्धि करते हैं। सोना सबसे शुद्ध धातु है। धारक को रुद्राक्ष के गुणों के साथ-साथ शान्ति समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मोती की माला- मोती की माला भाग्य बढ़ाती है, पुत्र प्राप्ति के लिए उत्तम है। मानसिक शान्ति, कर्क राशि, लग्न व पारिवारिक दु: में लाभदायक है।
इसके अलावा टाइगर, लाजव्रत, गारनेट, फिरोजा, मरगज आदि की माला अपने राशि ग्रह के अनुसार आपको कौन सा माला ठीक रहेगा इसकी सलाह लेकर धारण कर सकते हैं।

'रुद्राक्ष और उसका महत्व'


सौर मंडल में विचरण करते ग्रहों उपग्रहों के अलावा विविध नक्षत्रों का अचूक प्रभाव संसार के प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु एवं सजीव-निर्जीव आदि पर पड़ता है। कुंडली में जिस स्थान पर कोर्इ ग्रह जिस भाव का स्वामी होकर प्रबल होता है। उस स्थान अथवा भाव का उत्कृट फल देता है। उदाहरणस्वरूप यदि कुंडली में अष्टमेश सबल होकर चतुर्थ भाव में है। यह योग माता या सम्पत्ति को हानि देगा। यदि पंचम भाव में बैठा है तो पुत्र एवं विधा को हानि देगा। यदि छठे भाव में बैठा है तो शत्रु एवं रोग का नाश करेगा। इस प्रकार गदिर्श में जा रहे सितारों को अनुकूल करने के लिए विद्वान रुद्राक्ष रत्न आदि धारण करने के लिए कहते हैं।
रुद्राक्ष यानि रुद्र+अक्ष, रुद्र अर्थात भगवान शंकर अक्ष अर्थात आंसू। इस संधि विच्छेद से यह साफ पता चलता है कि इसकी उत्पति भगवान शंकर की आंखों के आसू से हुर्इ है। कहते है एक समय भगवान शंकर ने संसार के उपकार के लिए सहस्र वर्ष तप किया। तदोपरांत जब उन्होंने अपने नेत्र खोलें तो उनके नेत्र से अश्रु की चन्द बूंदें पृथ्वी पर गिर गए। इन बूंदों ने वृक्ष का रूप धारण किया। इस वृक्ष से जो फल प्राप्त हुआ उसकी गुठली ही रुद्राक्ष के रूप में मनुष्य को प्राप्त हुआ। इसे धारण करने से एक ऐसी सकारात्मक उर्जा मिलती है, जो मनुष्य को उसके दैहिक, दैविक भौतिक दु:खों को दूर करने में सहायक है। वैसे तो 24 से 48 घंटे में ही इसका प्रभाव दिखने लगता है पर कार्यसिद्धी में रुद्राक्ष का प्रभाव चालीस दिन में दिखता है।
जो व्यक्ति पवित्र और शुद्ध मन से भगवान शंकर की आराधना करके रुद्राक्ष धारण करता है, उसका सभी कष्ट दूर हो जाता है। यहां तक मानना है कि इसके दर्शन मात्र से ही पापों का क्षय हो जाता है। जिस घर में रुद्राक्ष की पूजा की जाती है, वहां लक्ष्मी जी का वास रहता है।
पुराणों में रुद्राक्ष के महत्व और उपयोगिता का उल्लेख इनके मुखों के अनुसार मिलता है। एक से इक्कीस मुखी गौरी शंकर, त्रिजुटी, गणेश, नाग रुद्राक्ष आदि प्रत्येक रुद्राक्ष का अपना अलग-अलग महत्व और उपयोगिता है।
एक मुखी रुद्राक्ष- यह साक्षात शिव स्वरूप है। शिव स्वरूप होने के कारण इस रुद्राक्ष को धारण करने से जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता। लक्ष्मी धरक के घर में चिरस्थायी विराज मान रहती हैं। चित्त में प्रसन्नता, अनायास धनप्राप्ति, रोगमुक्ति तथा व्यक्तित्व में निखार और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इस रुद्राक्ष को धारण करने व्यक्ति के जीवन में समस्त मनोवांछित इच्छाएं स्वत: पूर्ण होता जाती हैं और धारण करने वाला पवित्र पापों से मुक्त हो परब्रह्रा की प्राप्ति करता है तथा दैहिक भौतिक रूप से सुखी सम्पन्न रहता है। गोल एक मुखी रुद्राक्ष अत्यंत दुर्लभ है। अर्द्धचंद्राकार एक मुखी रुद्राक्ष आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
दो मुखी रुद्राक्ष- इस रुद्राक्ष को शंकर-पार्वती का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से मन को शांति प्राप्त होती है। चित्त में एकाग्रता तथा जीवन में आघ्यात्मिक उन्नति और वैवाहिक जीवन में आनंद का आर्शीवाद देने के साथ-साथ पति-पत्नी के बीच सभी इच्छाओं की एकता और एक दूसरे के बीच प्यार के साथ पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि होती है। व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। यह सभी प्रकार की कामनाओ को पूरा करने वाला तथा दांपत्य जीवन में सुख, शांति तेज प्रदान करने वाला है।
तीन मुखी रुद्राक्ष- इसे सत्व, रज और तप तीनों त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप माना गया है। मंगल ग्रह से संबंधित होने के कारण यह सोचने की शक्ति और विषय पर एकाग्रता लाना इस रुद्राक्ष के प्रधानमंत्री प्रभाव है। यह रचनात्मक बुद्धि की शक्ति का बढ़ा देता है। स्त्री हत्या तथा भ्रूण हत्या के पाप से मुक्त कराता है। इसे धारण करने वाला रचनात्मक संसाधन, बुद्धि और ज्ञान में स्वत: सफलता प्राप्त करने लगता है।
चार मुखी रूद्राक्ष- इस रूद्राक्ष में सर्वोच्च रचनात्मक गतिविधि, परमात्मा का ध्यान के साथ तार्किक और ठोस संरचनात्मक सोच को नियंत्रित करने की शक्ति होती है। इसे धारण करने से धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसका उपयोग सकारात्मक सोच, रचनात्मकता, बुद्धि और खुफिया तंत्र, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों और पत्रकारों, आत्मविश्वास के साथ बोलने वालों के लिए अधिक उपयुक्त है। इस रुद्राक्ष का सत्तारूढ़ ग्रह बुध है। इसे धारण करने से विचारों और काम की क्षमता में वृद्धि होती है। यह नाड़ी, चर्म हायपोथैमलस की बीमारियों से भी बचाता है।
पांच मुखी रूद्राक्ष- इस रुद्राक्ष में भगवान रुद्र के पांच स्वरूपों का समावेश है। स्वास्थ्य के रखरखाव सुख प्रदान करने वाले महा प्रभावशाली बृहस्पति से संबंधित होने इसे गृहस्थ का कारक माना गया है, अत: इसे धारण करने से गृहस्थ जीवन में बाधाएं नहीं आतीं। इसके धारणकर्ता की आयु दीर्घ होती है, स्वास्थ्य ठीक रहता तथा प्रगति का मार्ग प्रशस्त होते है। ह्रदय रोग, रक्तचाप, तनाव, चिंता, एक्जिमा गैस्ट्रिक अल्सर आदि बहुत लाभदायक है।
छ: मुखी रूद्राक्ष- कार्तिकेय का प्रतीक यह रुद्राक्ष पापों से मुक्ति एवं संतान देने वाला होता है। इसे धारण करने से व्यक्ति विधावान, ज्ञानवान बुद्धिमान होता है। जो मंदबुद्धि हैं या जिन छात्रों का मन पढ़ार्इ में नहीं लगता, उन्हें षष्ठमुखी रुद्राक्ष धारण करने से निश्चत ही लाभ मिलता है। तथा व्यक्ति को भोग-विलाससुख की प्राप्ति में बाध नहीं आती तथा आंख, नाक, गला, यौन अंगों, गुर्दे मूत्राशय संबंधी रोगों रोक-थाम में भी सहायक है।
सात मुखी रूद्राक्ष- कामदेव का प्रतीक यह रुद्राक्ष परम सौभाग्यप्रदायी है। शनि ग्रह प्रतिनिधि होने से शनि को स्थिर कर दरिद्रता दूर करने, प्रसिद्धि, सफलता, सम्मान, न्याय, प्रेम, ज्ञान, तेज, बल, प्राधिकार व्यापार में प्रगति और लंबी उम्र के लिए सहायक तथा सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस, गठिया टीबी जैसे रोगों में लाभप्रद है।
आठमुखी रूद्राक्ष- इस रुद्राक्ष को धारण करने से कभी अपयश की प्राप्ति नहीं होती। धारणकर्ता पर गणेश की क्रिपादृष्टि रहती है। इसे धारण करने से त्रितापों का अंत होता है, व्यक्ति की ब्रह्राविधा में रूचि जाग्रत होती है, उत्थान का मार्ग प्रशस्त होता है, न्यायिक मामलों में विजय प्राप्त होती है।
आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, आदि का कभी अभाव नहीं होता। साथ ही जीवन में आने वाली समस्त विघ्न-बाधओं से निजात पाते हुए मनुष्य संसारिक सुख भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। राहु ग्रह में संबद्ध होने के कारण इसे धारण करने से राहुजन्ति कष्ट तथा समस्त दैहिक बाधाएं दूर हो जाती हैं।
नौ मुखी रूद्राक्ष- नौमुखी रूद्राक्ष को भैरव का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने से भोग-मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा धारणकर्ता को ब्रम्ह भ्रूणहत्या का दोष नहीं लगता है।
नौमुखी रुद्राक्ष में नवदुर्गा के स्वरूपों का बल तेज तथा नव तीर्थो- का फल मिलता है। नवग्रह बाध निवारण में लाभकारी होने के साथ ही इसे धारण करने से उदर पीड़ा, नेत्र, ज्वर आदि शारीरिक रोगों का निवारण में भी लाभप्रद है। इसे नवरात्र के दिनों में धारण करने से यह विशेष प्रभाव दिखलाता है।
दस मुखी रूद्राक्ष- यह रूद्राक्ष भगवान विष्णु का प्रतीक है। इसको धारण करने से ग्रह, पिशाच, वैताल, ब्रह्राराक्षस, सर्पादि का भय नहीं रहता।
इसे धारण करने वाला समाज में प्रभावशाली होता है। उसका सर्वत्र सम्मान होता है। ऐसे व्यक्ति पर ग्रहों का कोर्इ भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। यह रुद्राक्ष विशेषकर राजनीतिज्ञों, कलाकरों समाजसेवियों के लिए लाभकारी है।
ग्यारह मुखी रूद्राक्ष- भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हनुमान जी के प्रताक इस रुद्राक्ष को धारण करने से हनुमानजी की धारणकर्ता पर विशेष कृपा रहती है तथा उसे जीवन में कभी भी भूत-प्रेतादि बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता है।
व्यक्ति का जन्म-मरण के चक्र में नहीं पड़ना पड़ता। बांझ को संतान सुख आदि भी इसे धारण करने से प्राप्त होते हैं। तंत्र-मंत्र साधकों के लिए यह रूद्राक्ष बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसमें साधना काल में आने वाली बाधाओं को शमन करने की क्षमता होती है।
बारह मुखी रूद्राक्ष- यह रुद्राक्ष बारह ज्योतिर्लिगों का प्रतीक है। इसे धारण करने से भगवान सूर्यदेव सदैव प्रसन्न रहते हैं। धारणकर्ता समाज में सम्मान्ति होता है तथा वाणी चातुर्य से किसी को भी वश में कर लेने की अदभूत क्षमता जाती है।
तेरह मुखी रुद्रक्ष- देवराज इंद्र का प्रिय समस्त मनोंकामनाओं को पूर्ण करने वाला यह रुद्राक्ष साक्षात कामदेव का प्रतीक है। इसके धारणकर्ता को कार्तिकेय के समान माना गया है। इसे धारण करने से भौतिक आध्यात्मिक लाभ होता है। धारणकर्ता इंद्र के समान ऐश्वर्य भोगी होता है। तंत्र क्रिया में इसे वशीकरण के लिए काफी महत्वपूर्ण माना गया है।
चौदह मुखी रूद्राक्ष- श्रीकंठदेव के प्रतीक, हनुमान स्वरूप
यह रुद्राक्ष अति दुर्लभ महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस रुद्राक्ष को स्वयं भगवान शिव धारण किया था। इसे धारण करने से परिवार का कल्याण होता है तथा भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकीनी का प्रकोप नहीं होता, धारणकर्ता के जीवन में कभी दुघर्टना, रोग, हानि नहीं होती। धारक सदैव चिंता मुक्त रहता है। समृद्धि देना इस रुद्राक्ष का विशेष गुण है।
गौरीशंकर रूद्राक्ष- प्रकृतिश: परस्पर जुड़े दो रुद्राक्षों को गौरीशंकर रुद्राक्ष कहते है। यह शिव-पार्वती का प्रतीक होता है। यह बहुत कीमती दुर्लभ है। यह एकमुखी चौदहमुखी रूद्राक्ष के समान ही प्रभावशाली होता है। यह रुद्राक्ष आठ से चौदहमुखी तक होते हैं। आठ से दसमुखी तक गौरीशंकर रुद्राक्ष आमत: मिल जाते है, लेकिन ग्यारह से चौदहमुखी गौरीशंकर रुद्राक्ष दुर्लभ है।
इस रुद्राक्ष को तिजोरी या पूजन कक्ष में रक्षकर नित्य पूजन करने से अनुकूल प्रभाव होता है। तथा इसे धारण करने से पति-पत्नी के बीच यदि कोर्इ क्लेश हो तो वह तत्काल दूर हो जाता है और पारिवारिक शान्ति आती है।
त्रिजुगी रूद्राक्ष- प्रकृतिश: परस्पर तीन जुड़े हुए रुद्राक्ष को त्रिजुगी रूद्राक्ष कहते हैं। इसे गौरी पाट रूद्राक्ष भी कहते हैं। यह शिव-गणेश-पार्वती अथवा ब्रह्रा-शिव-पार्वती का प्रतीक होता है।
यह भी एकमुखी रुद्राक्ष की भांति प्रभावशाली होता है। इसे धारण करने मात्र से गुरू ब्रह्रमा, गुरू विष्णु, गुरू महेश की कृपा स्वत: प्राप्त हो जाती है।
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