12 अप्रैल 2013

'मां योगिनी का मंदिर

कामख्या के बराबर का है मां योगिनी का मंदिर
झारखंड प्रान्त में गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड में स्थित बारकोपा में मां योगिनी मंदिर है। जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूर स्थित मां का मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, जहां तंत्रों-मंत्रों के साधक अपनी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए ते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ था कहा जाता है महाभारत काल में यह मंदिर को गुप्त योगिनी के नाम से जाना जाता था। पांडवों ने अपने अज्ञात वर्ष का कुछ समय यहां पर भी बिताया था।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, पत्नी सती के अपमान से क्रोधित होकर भगवान शिव जब उनका जलता हुआ शरीर लेकर तांडव करने लगे थे तो संसार को विध्वंस से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शव के कई टुकड़े कर दिए थे।
जहाँ-जहाँ सती के शव के वह सिद्ध पीठ के रुप में विख्यात हुए। इसी क्रम में उनकी बायीं जांघ योगिनी पहाड़ी की गुफा में गिरा था। विद्वानों का कहना है कि हमारे पुराणों में 51 सिद्ध पीठ का वर्णन है, लेकिन योगिनी पुराण ने सिद्ध पीठों की संख्या 52 बताई है। इस सिद्धस्थल को गुप्त रखा गया था। इस धाम की यह विशेषता है कि असाध्य रोगी भी मैया के आशीर्वाद से भला चंगा हो जाता है
मंदिर का गर्भगृह आकर्षण का विशेष केंद्र है। मां योगिनी मंदिर के ठीक बांयीं ओर से 354 सीढ़ी ऊपर उंचे पहाड़ पर मां का गर्भगृह है। गर्भगृह के अंदर जाने के लिए एक गुफा से होकर गुजरना पड़ता है। इसे बाहर से देखकर अंदर जाने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि गुफा के संकरे द्वार और अंदर चारों तरफ नुकीले पत्थर हैं, इसमें पूरी तरह अंधेरा होता है।
लेकिन जैसे ही आप गुफा के अंदर प्रवेश करते हैं, आपको प्रकाश नजर आता है, जबकि यहां बिजली की व्यवस्था नहीं है। मां की कृपा से मोटे से मोटा जातक भी मां के जय कारे लगाता हुआ इसमें से आसानी से निकल जाता है। गर्भगृह में बहुत से साध्य अपनी साधना में मग्र रहते हैं। जंगलों के बीचों-बीच में बना यह मंदिर तंत्र साधना के मामले में कामख्या के ही बराबर का है। दोनों में तीन दरवाजे हैं, दोनों मंदिरों में पूजा की प्रथा भी एक सामान है। दोनों मंदिरों में पिण्डी की ही पूजा होती है।
पहले यहाँ कम आवाजाही, रहने व जंगल की अधिकता के कारण लोग यहां दिन में भी आने से कतराते थे। 1970 के पूर्व यहां लोगों की बहुत कम आवाजाही थी और मंदिर के बाहर विशाल बरगद वृक्ष में अखंड सिंदूर का टिका लगा हुआ था। जिससे यह पता चलता था कि यहाँ कोई जागृत मां का मंदिर है।
एक साधक पाठक बाबा 1970 में यहां आये और उन्होंने पहाड़ की गुफा में मां योगिनी के असली रूप होने का खुलासा किया। इस उपलक्ष्य पर विशाल यज्ञ भी हुआ था। इसके बाद इस क्षेत्र का उत्तरोत्तर विकास होता गया  पहाड़ी श्रृंखला के बीच मां योगिनी का भव्य मंदिर व बगलरीर पर्वत की चोटी पर योगिनी गुफा। यहां हर रोज श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। मंगल और शनिवार को यहां का नजारा कुछ अलग होता है।
मां योगिनी मंदिर के दाहिनी ओर की पहाड़ी पर मनोकामना मंदिर है। जो भक्त मां योगिनी के दर्शन के लिए आते हैं, वे मनोकामना मंदिर भी अवश्य जाते है। बताया जाता है कि पहले यहां नर बलि दी जाती थी। लेकिन अंग्रेजों के शासनकाल में इसे बंद करवा दिया गया। मंदिर के सामने एक बट वृक्ष है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस बट वृक्ष पर बैठकर साधक साधना किया करते थे और सिद्धि प्राप्त करते थे।
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